Hartalika Teej Puja Vidhi In Hindi: हारतालिका तीज भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं।
पूजा की तैयारी:
- आवश्यक सामग्री: पूजा विधि के लिए कुछ आवश्यक सामग्रियों की आवश्यकता होती है, जैसे:
- मिट्टी या धातु की शिव-पार्वती की मूर्ति
- कलश (जल से भरा हुआ)
- पूजा थाल
- फल, फूल, और मिठाई
- धूप, दीपक और अगरबत्ती
- हल्दी, कुमकुम, और चावल
- पूजा स्थल की सजावट: पूजा स्थल को साफ-सुथरा और सुंदर सजाना चाहिए। रंगोली बनाई जा सकती है और दीपों की रोशनी से सजाया जा सकता है। इस दिन पूजा का स्थान पवित्र होना चाहिए और इसे अच्छी तरह से सजाना चाहिए ताकि पूजा के समय सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
व्रत और नियम:
पूजा की तैयारी:
आवश्यक सामग्री: पूजा विधि के लिए कुछ आवश्यक सामग्रियों की आवश्यकता होती है, जैसे:
- मिट्टी या धातु की शिव-पार्वती की मूर्ति
- कलश (जल से भरा हुआ)
- पूजा थाल
- फल, फूल, और मिठाई
- धूप, दीपक और अगरबत्ती
- हल्दी, कुमकुम, और चावल
पूजा स्थल की सजावट: पूजा स्थल को साफ-सुथरा और सुंदर सजाना चाहिए। रंगोली बनाई जा सकती है और दीपों की रोशनी से सजाया जा सकता है। इस दिन पूजा का स्थान पवित्र होना चाहिए और इसे अच्छी तरह से सजाना चाहिए ताकि पूजा के समय सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
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व्रत के नियम: हारतालिका तीज का व्रत निर्जला होता है, जिसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। यह व्रत सुबह से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक रखा जाता है। व्रत के दौरान संयम और शुद्धता का पालन किया जाता है। व्रती को पूरे दिन माता पार्वती और भगवान शिव की भक्ति में लीन रहना चाहिए। व्रत के नियमों का पालन कठोरता से किया जाता है और इसमें किसी प्रकार की ढिलाई नहीं दी जाती।
व्रत का महत्त्व: इस व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। इसे रखने से विवाहित महिलाओं को अपने पति की लंबी उम्र और अविवाहित महिलाओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के पालन से माता पार्वती और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन को सुख-समृद्धि और शांति से भर देती है।
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पूजा विधि:
पूजा का आरंभ: पूजा का शुभारंभ भगवान गणेश की वंदना से किया जाता है। सबसे पहले दीप प्रज्वलित कर गणेश जी का आह्वान करें, ताकि पूजा में किसी प्रकार की बाधा न आए। गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का महत्वपूर्ण अंग होती है।
कलश स्थापन: पूजा स्थल पर एक पवित्र कलश स्थापित करें। कलश में जल भरकर उसके ऊपर नारियल रखें। कलश स्थापना से पूजा स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसे पूजा स्थल के केंद्र में रखें और कलश के चारों ओर दीपक जलाएं।
गौरी-शिव पूजन: मिट्टी या धातु की गौरी-शिव की मूर्ति को सजाकर उनकी पूजा करें। उन्हें फूल, फल, हल्दी-कुमकुम अर्पित करें और पूरे मन से उनकी पूजा करें। गौरी-शिव की पूजा में विशेष रूप से सुहाग के सामान जैसे चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी, और साड़ी अर्पित की जाती है। पूजा के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के प्रति संकल्प लें कि आप उनके सिद्धांतों का पालन करेंगे।
व्रत कथा सुनना: इस पूजा के दौरान हारतालिका तीज की व्रत कथा सुनना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कथा में माता पार्वती के कठोर तप और भगवान शिव से उनके विवाह की कहानी सुनाई जाती है। यह कथा व्रती महिलाओं को अपनी पति के प्रति समर्पण और प्रेम की शिक्षा देती है। कथा सुनने से मन को शांति मिलती है और व्रत का महत्व समझ में आता है।
आरती: पूजा के अंत में गौरी-शिव की आरती करें और उनके चरणों में अपना नमन करें। आरती करते समय दीपक घुमाएं और भगवती पार्वती तथा भगवान शिव का गुणगान करें। आरती के बाद सभी को प्रसाद वितरण करें और स्वयं भी उसे ग्रहण करें।
पूजा के बाद की क्रियाएं:
प्रसाद वितरण: पूजा समाप्त होने के बाद सभी को प्रसाद बांटा जाता है। प्रसाद के रूप में फल, मिठाई, और अन्य पकवान दिए जा सकते हैं। प्रसाद वितरण के दौरान यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी व्रती और पूजा में उपस्थित व्यक्तियों को प्रसाद मिल सके। प्रसाद वितरण के बाद सभी को आशीर्वाद दें और व्रत के महत्व को समझाएं।
व्रत का समापन: अगले दिन सूर्योदय के बाद महिलाएं व्रत का समापन करती हैं। व्रत खोलने से पहले स्नान करके भगवान शिव और माता पार्वती का आह्वान करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। व्रत खोलने के बाद सबसे पहले जल ग्रहण करें और फिर अन्न का सेवन करें। व्रत के समापन पर व्रती को अपने परिवार के साथ भोजन करना चाहिए और उनके साथ मिलकर भगवान शिव और माता पार्वती का आभार व्यक्त करना चाहिए।
विशेष सुझाव:
पूजा के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें: पूजा करते समय मन को शांत और स्थिर रखें। केवल शुद्ध और पवित्र सामग्रियों का उपयोग करें। पूजा करते समय संकल्प लें कि आप व्रत के नियमों का पूरी तरह से पालन करेंगे।
अन्य धार्मिक कर्म: पूजा के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए भक्ति भाव से आराधना करें। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इतिहास और पौराणिक कथाएं:
हारतालिका तीज का इतिहास और इसका पौराणिक महत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस पर्व का आरंभ माता पार्वती के कठोर तप से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। उनके तप के प्रभाव से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार, हारतालिका तीज माता पार्वती के अडिग संकल्प और प्रेम की प्रतीक है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता पार्वती को उनके पिता ने भगवान विष्णु से विवाह के लिए तैयार किया, तो उनकी सखियों ने उन्हें वन में छिपा दिया ताकि वे इस विवाह से बच सकें। इस प्रकार, ‘हारतालिका’ शब्द ‘हरत’ (हरण करना) और ‘आलिका’ (सखी) से बना है, जो इस घटना की ओर संकेत करता है। इस दिन को माता पार्वती के शिव जी के प्रति समर्पण और तपस्या के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
निष्कर्ष
हारतालिका तीज का व्रत और पूजा विधि महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह न केवल उनकी धार्मिक आस्था को मजबूत करता है बल्कि उनके वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि का संचार भी करता है। इस दिन की गई पूजा और व्रत से माता पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो जीवन को सुख-समृद्धि और शांति से भर देता है।
इस वर्ष 6 सितंबर 2024 को हरतालिका तीज मनाई जा रही है, इस दिन व्रत और पूजा विधि का पालन करके भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करें।
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